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मोम की तरह,आंखों से पिघल जाएंगे


पिछले कई जख्मों को,
दामन में छुपाए बैठी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,
शायद इस इन्तज़ार में,
कि कभी तो ये भी भर जाएंगे,
उन्हीं रास्तों पर शायद,
वो ख्वाब फिर नजर आएंगे,
जिनको खो कर वो,
एक बार तन्हा हुई थी,
न पाकर उन्हें आंखों में,
फूट-फूट कर रोयी थी,
पर इस बार न जाने क्यों,
उसे एक यंकी था,
शायद उसकी आंखों में,
वो ख्वाब, फिर कंही था,
ऐसा न हो कि,
इस बार भी वो टूट जाए,
उसके थमें आंसू,
इस बार न बिखर जाए,
इस बार जो बिखर गये तो,
कभी उठ नहीं पाएंगे,
मोम की तरह, वो भी,
आंखों से पिघल जाएंगे,
इसलिए शायद वो आज,
यूं सहमी हुई लगी थी,
वो तन्हाई, जो रास्तों पर,
नजरें लगाए बैठी थी,
पिछले कई ज़ख्मों को,
दामन में छुपाए बैठी थी।
................
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

1 comment

Unknown said...

so nice ..meaning full poetry

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