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नई डिग्रियां (भाग-4)

अंत में सत्ताधारी दल की पहल पर एवं अजय सिंह ग्रुप के झुकने पर दोनों दल के छात्र-छात्राओं के बीच समझौता हो गया। चूंकि अवध सिन्हा सत्ताधारी दल का था और किसी छात्रा के साथ अभद्र व्यवहार उसी से हुआ था तथा बाद में अजय और अवध द्वारा रजनी को सरेआम नंगी करने का प्रयास किया गया एवं उसके अधोवस्त्र को बेतरह फाड़ दिया गया था, इसलिए सत्ताधारी दल को बहुत झुकना पड़ा था। बमोकाबले इसके किसी लड़की की इज्जत जान पर भी खेल कर बचाने के लिए शैल तथा मधुमिता और उनसे सम्बन्धित जन-जागरण पार्टी की लोकप्रियता में काफी इजाफा हो गया था। वैसे समझौता तो इस दल ने भी किया, पर लोअर हैंड और अपर हैंड का फर्क था।
इस घटना का बहुत बड़ा कुप्रभाव अजय सिंह के दल पर पड़ा भी। उसके दल में बिखराव होने लगा अथवा यों कहिए कि उसके दल में भगदड़ मच गई थी। छात्र-छात्राएं उसके दल से टूट-टूट कर शैल के दल में शामिल होने लगे थे। वैसे सच पूछा जाए तो अजय ग्रुप ने बाहुबल से उन छात्र-छात्राओं को अपने दल से जुड़े रहने के लिए मजबूर कर रखा था। अपने दल में शामिल नहीं होने वाले छात्र-छात्राओं का रैगिंग वे जालिमाना ढंग से करते थे। उनका विरोध तब करने वाला कोई नहीं था। इसलिए शैल के दल ने जैसे ही उनके नहल्ले पर दहल्ला मारा कि वे छात्र-छात्राएं उससे टूटकर झट शैल के दल में आकर मिलने लगी थी।
यह दीगर बात है कि अपने दल के इस टूटन को रोकने के लिए तब अजय ग्रुप ने कई बार शैल ग्रुप से मुठभेड़ भी की, परन्तु हर बार अजय गु्रप ही मार खाकर पीछे हटा था। इस तरह उसका रहा-सहा रुतबा भी मिट चला था।
ऐन वक्त कॉलेज के स्टूडेंट यूनियन का चुनाव भी आ पहुंचा था। राजनैतिक पार्टियां अब इस ओर मुखातिब हो उठी थी। सत्ताधारी दल में बड़ी ऊहापोह की स्थिति थी। अजय सिंह और अवध सिन्हा की मनमानी तथा बदनामी उनके लिए बहुत भारी पड़ने लगी थी। इसके विपरीत शैल की लोकप्रियता से जन-जागरण पार्टी खासी उत्साहित थी।
सत्ताधारी दल ने तब एक जबरदस्त पासा फेंकने का निश्चय किया। अजय दल की सचिव पद धारिणी सुरेखा सेठ को उसने शैल को जन-जागरण पार्टी से तोड़कर सत्ताधारी दल में लाने की मुहिम पर लगाया। सुरेखा शहर के एक धन्ना सेठ की इकलौती बेटी थी और सच पूछा जाए तो तफरीह के लिए कॉलेज में पढ़ती थी। वह एकदम खुले स्वभाव की पाश्चात्य सभ्यता की पुतली जैसी थी। कभी काले शीशे लगी मारुति वैन तो कभी स्कूटर, तो कभी कोई महंगी विदेशी गाड़ी स्वयं ड्राइव करती कॉलेज आती थी और दोस्तों एवं सहेलियों पर धुन कर पैसा खर्च करती थी।
सुरेखा भी शैल के पराक्रम से खूब प्रभावित थी। वह किसी न किसी तरह शैल का सान्निध्य चाहने लगी थी, परन्तु मधुमिता का जैसे उसपर पहरा लगा हुआ था। इस बाबत यदि शेैल से पूछा जाए तो वह मधुमिता या सुरेखा से अधिक रजनी मेहता की कर्मठता और शालीनता से अधिक प्रभावित था, फिर भी उसका अधिक झुकाव मधुमिता और सुरेखा की ओर था। क्योंकि मधुमिता या सुरेखा उसे जो दे सकती थी, रजनी मेहता वह देने के लिए बिल्कुल राजी नहीं थी। इसलिए बहती गंगा में डुबकी लगाने का अभ्यस्त शैल का अधिक लगाव मधुमिता से था।
शैल तब एक किराए के कमरे में रहता था। कॉलेज हॉस्टल या स्टूडेंट्स लॉज उसे रास नहीं आता था। चूंकि वहां वह मनमानी नहीं कर सकता था। इसलिए अपनी मां संध्या रानी की एक सहेली के एक मकान में दो कमरे किराए पर लेकर वहीं रहता था। पैसे की कोई कमी उसे थी ही नहीं। पैसों के लिए वह पिता देवेन्द्र नाथ से कभी कुछ नहीं कहता था परन्तु उसकी माँ संध्या रानी को पता नहीं आखिरी संतान होने के कारण शैल से अधिक प्यार था कि वह खुलकर अपना वात्सल्य शैल पर लुटाती थी और शैल जब भी, जितने भी रुपए मांगता, वह उसे दे देती थी।
तभी एक संध्या समय सुरेखा स्वयं अपनी काली शीशे वाली मारुति वैन ड्राइव करती शैल के निवास पर आई। शैल तब आवास में ही था। उसने सुरेखा का स्वागत किया। बाद में उसके आने का कारण पूछा।
‘‘शैल जी, देखिए मेरा सत्ताधारी दल से बहुत प्रगाढ़ सम्पर्क है। मेरे पिता जब भी जरूरत होती है, सीधे मुख्यमंत्री से जा मिलते हैं। उसी सत्ताधारी दल के अध्यक्ष ने मुझसे कहा कि जिस तरह से अजय सिंह और अवध सिन्हा की बदनामी फैल गई है इससे वे कॉलेज स्टूडेंट्स यूनियन के चुनाव में पुनः उन्हें अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए अपनी ओर से टिकट नहीं देना चाहते हैं। वे तो अध्यक्ष पद के लिए आपको और सचिव पद के लिए मुझे टिकट देने के पक्ष में हैं। इसीलिए आपसे मिलकर बात करने के लिए उन्होंने मुझे अधिकृत कर आपके पास भेजा है। जहां तक चुनाव लड़ने के लिए फंड की जरूरत है, वह प्रचुर मात्रा में वे आपको देंगे। उसपर भी यदि कोई कमी रह जाएगी तो फिर मैं हूं न। आपको फंड की जरा भी दिक्कत नहीं होगी।’’ सुरेखा ने तब कहा था।
सुरेखा की बातें सुनकर एक बार तो शैल को लगा कि वह उसे झाड़ दे और कहे कि तुमने कैसे हिम्मत की मेरे पास यह प्रस्ताव लाने की? परन्तु शायद उसपर सुपर सेक्स का प्रभाव पड़ गया। उसने सुरेखा को वैसा न कह कर टालने की गरज से कहा, ‘‘ठीक है सुरेखा जी। आपके प्रस्ताव पर अपनी राय व्यक्त करने के लिए मुझे कुछ सोचने-समझने का समय चाहिए।’’
‘‘जरूर-जरूर शैलजी। अच्छी तरह सोच-समझ लीजिए। वैसे अपनी ओर से मैं कुछ जोड़ देना चाहती हूं, वह यह कि सत्ताधारी दल फिर भी सत्ताधारी दल है। उस दल का मुकाबला किसी तरह जन-जागरण पार्टी नहीं कर सकती है। दूसरी जो सबसे बड़ी बात है, वह यह कि संतराम विद्रोहीजी को मैं अरसे से जानती हूं। उनकी आदत है यूज एंड थ्रो करने की। बड़े ही स्वार्थी जीव हैं वे। उनकी पार्टी भी कोई राष्ट्रीय पार्टी नहीं है। अधिक से अधिक चार-पांच सीट विधानसभा की और दो सीट लोकसभा की जीत सकते हैं। उससे क्या वे सत्ता पर काबिज हो सकते हैं? कभी नहीं, जबकि सत्ताधारी दल केन्द्र और राज्य दोनों जगह सत्ता पर काबिज है। मान भी लिया जाए कि वह सत्ता से च्युत हो जाए, फिर भी वह प्रमुख विरोधी दल तो अवश्य रहेगा। परन्तु यह जन-जागरण पार्टी कभी सत्ता में आ भी सकती है क्या? अथवा प्रमुख विरोधी दल बन सकती है? आपके गुण और पराक्रम को देखकर सत्ताधारी दलवाले आपसे बहुत प्रभावित हैं। ऐसे में यदि आप उनसे जुड़ जायेंगे तो सत्ता के गलियारे तक आपकी पहुंच अत्यंत सुलभ हो जाएगी, फिर सत्ता के गलियारे में पहुंच होने भर ही से क्या से क्या नहीं हो जा सकता है। इसलिए इन सब बातों पर भी आप अच्छी तरह विचार कर लेंगे।’’
शैल अब तक सुरेखा को एक धन्ना सेठ की दिलफेंक लड़की भर समझ रहा था। लेकिन उसकी बातों ने उसे अत्यंत प्रभावित कर डाला था। सुरेखा की बातों में सचमुच बड़ा दम था। उसे लगा जैसे उसके सामने केवल एक बिंदास दिलफेंक सेक्स-एडिक्ट लड़की न होकर राजनीति में एक परिपक्व लड़की है। वह सोचने लगा कि बिंदास, दिलफेंक या सेक्स एडिक्ट होना तो किसी की व्यक्तिगत बात है, कमोवेश सब कुछ न कुछ हद तक होते ही हैं लेकिन राजनीतिक परिपक्वता सब के वश की बात नहीं है। अतः सुरेखा सचमुच एक हस्ती है।
‘‘सुरेखाजी! विचार करते वक्त मैं अवश्य आपकी इन बेशकीमती बातों को ध्यान में रखूंगा।’’ शैल ने कहा था।
इसके बाद सुरेखा हाथ जोड़ कर चली गई थी। जबकि शैल गहन चिंतन में लीन हो गया था।
शैल ने संतराम अथवा मधुमिता से इस बात की चर्चा नहीं की। लेकिन दूसरे नहीं, तीसरे दिन संतराम के कान में यह बात पड़ ही गई। उसने मधुमिता से इसकी चर्चा की और उसे शैल की पहरेदारी में लगा दिया।
मधुमिता ने जैसे ही सुना कि सुरेखा अकेली शैल के पास अपनी काले शीशे वाली कार लेकर आई थी, वैसे ही सबसे पहले उसने प्रश्न किया कि वह कार में बैठाकर शैल को लेकर कहीं गई थी क्या?
‘‘नहीं-नहीं। शैल को लेकर वह कहीं गई तो नहीं थी, परन्तु आधे घंटे तक वह शैल के आवास में ठहरी थी।’’
इस पर मधुमिता ने एक गहरी सांस ली थी।
‘‘तुम इतनी परेशान क्यों हो उठी बेटी ?’’ तभी उसकी मां ने उससे पूछा था।
‘‘नहीं मां, मैं परेशान कहां हूं ?’’ मधुमिता ने अपनी मां को जवाब दिया, परन्तु मन ही मन वह बोल उठी ‘‘तुम क्या जानो मां काले शीशे वाली वह मारुति वैन सुरेखा की गाड़ी न हो कर उसका चलता-फिरता सुहागकक्ष है। मुझे डर है कि कहीं वह झपट्टा मार शैल को मुझसे छीन नहीं ले।’’
अंत में संतराम जी ने शैल को बुलवाया था।
‘‘बरखुर्दार, मैंने सुना कि कर्मचंद सेठ की बेटी सुरेखा सेठ आप से मिलने परसों संध्या आई थी और आधे घंटे तक आपसे बात-विचार करती रही थी?’’ संतराम जी ने उससे पूछा था।
‘‘हाँ महाशयजी! आई थी और आधे घंटे तक मगजमारी करती रही थी।’’
‘‘क्यों, क्या कह रही थी ?’’
‘‘क्या कहती? वही फोड़ने वाली बातें। आप सत्ताधारी दल में आ जाइए। अजय सिंह को कॉलेज के स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष पद का टिकट न देकर आपको देगा। वगैरह-वगैरह।’’
‘‘तो आपने क्या जवाब दिया ?’’
‘‘मैं क्या जवाब देता। दिल ने तो चाहा था कि दो-चार मोटी गालियां दे उसे दुत्कार कर भगा दूं। परन्तु सोचा कि यह असभ्यता होगी। हमारे देश की परंपरा है कि घर आया दुश्मन भी मेहमान होता है। इसलिए वैसा नहीं कर सका। फिर सोचा क्यों न इसे डाइलेमा में रख दूं। इसलिए कह दिया ‘‘सुरेखा जी मैं जरा सोच-समझ कर कहूंगा।’’
‘‘तब तो फिर वह आपको जवाब देने के लिए जोर देगी ?’’
‘‘हाँ जोर तो अवश्य देगी, परन्तु मैं हर बार यही कहूंगा कि मुझे जरा और सोच लेने दीजिए। इस तरह उसे नामजदगी के परचे दाखिल करने तक डाइलेमा में रखूंगा ताकि वे लोग कोई तैयारी कर नहीं पायें और अंतिम समय इन्कार कर दूंगा। इस तरह वे झटके में आ जाएंगे।’’
‘‘ठीक है बरखुर्दार जी। आप स्वयं राजनीति के एक मंजे खिलाड़ी के समान लगते है। वैसे वे आपको सब्जबाग अवश्य दिखाएंगे, परन्तु सिवा छात्र यूनियन के अध्यक्ष पद को छोड़कर और कोई पद नहीं दे सकेंगे। क्योंकि उनके यहां विधायक, सांसद, अथवा नगर परिषद के वार्ड कमिश्नर से लेकर अध्यक्ष तक एक-एक पद के लिए पांच-पांच दस-दस उम्मीदवार रहते हैं। बड़े-बड़े थैलीशाह भी रहते हैं, जबकि आपकी प्रतिभा, संयोजन विधा और पराक्रम देखकर मैंने अपने दल के अन्य पदाधिकारियों से राय-मशविरा करके आगामी विधानसभा चुनाव में आपको इस क्षेत्र से विधायक की उम्मीदवारी देने की बात एकदम तय कर ली है। अब आप स्वयं सोच सकते हैं कि आपको फायदा किस पार्टी में रहने से है। अगर जन-जागरण पार्टी के साथ रहेंगे तो न केवल छात्र यूनियन का अध्यक्ष, बल्कि विधायक भी बनने का चांस रहेगा। फिर चाहे जन-जागरण पार्टी की सरकार न भी बने या सत्ता में उसको भागीदारी न भी मिले, फिर भी विधायक तो रहेंगे ? जबकि सत्ताधारी दल में अधिक से अधिक छात्र यूनियन के अध्यक्ष बनेंगे तथा बाद में उनके चमचे या चाटुकार।’’ संतराम ने सुरेखा द्वारा फेंके गए रंग के पत्ते पर जैसे तुरूप का पत्ता मार डाला था।
शैल एक बार तो जैसे एकदम गड़बड़ा सा गया था, लेकिन तुरंत संभल भी गया।
‘‘महाशय जी, मैं क्या बच्चा हूं, जो सत्तापक्ष मुझे लेमनचूस दिखाकर बरगला लेगा? मैं क्या सत्ता पक्षवालों की फितरत को नहीं जानता हूं ?’’ शैल ने जवाब दिया था।
‘‘वह तो ठीक है बरखुर्दार, फिर भी बुजुर्ग होने के नाते मैं एक बार आपको सावधान कर देना चाहता हूं।
‘‘इसके लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।’’ शैल ने कहा और हाथ जोड़कर विदाई लेकर जाने लगा।
‘‘बेटी मधु। देखो यह मोहरा हाथ से निकलने नहीं पाए। हमारे लिए यह बड़े काम का मोहरा है। यह हमारी जन-जागरण पार्टी की खोई प्रतिष्ठा को पुनः वापस दिला सकता है। वैसे देख रही हो न, नौजवान जानकर उन चांडालों ने सुरेखा जैसी लड़की को उसे पटाने के लिए लगा दिया है।’’ शैल के जाते ही संतराम ने अपनी बेटी से कहा था।
‘‘अजी वे लोग सुरेखा को शैल के पीछे लगाएं या सुनैना को। हमारी मधु के पंजे से उसे वे छीन नहीं सकते है। क्यों मधु ?’’
‘‘मैं सुरेखा के सच से शैल को अवगत करा दूंगी न। आपलोग निश्चिन्त रहिए शैल के लिए। लेकिन हां, उसे विधानसभा में किसी क्षेत्र से खड़ा करने का वादा पूरा करना ही पड़ेगा।’’ मधुमिता ने तब कहा था।
‘‘वह मैं कर दूंगा मधु। इसे यदि उतना भी नहीं दिया जाएगा तो क्यों हमसे जुड़ा रहेगा। लेकिन तुम बराबर उसकी रखवाली में लगी रहो। सत्ताधारी धनबल का प्रयोग भी कर सकते हैं। सबसे अधिक खतरनाक कर्मचंद सेठ की वह बेटी सुरेखा है। उसके बारे में बहुत कुछ सुना जाता है।’’ संतराम ने मधुमिता को सावधान करने की गरज से कहा था।
‘‘वह मैं कर लूंगी पिताजी।’’ मधुमिता ने कहा था।
इस तरह मधुमिता ने अपने पिता को आश्वासन तो दे दिया, लेकिन सुरेखा के खुलेपन से वह थर्रा सी उठी थी। शैल की नजरों को उसने खूब पढ़ लिया था। उसके लिए काफी चाहत है। लेकिन अपने प्रति उसकी उस चाहत को कायम रखने के लिए वह उसे अपने पुट्ठे पर हाथ रखने देना नहीं चाहती थी। क्योंकि वह जानती थी कि पुट्ठे पर हाथ रखते ही उसकी वह चाहत, जिसे पूरी करने के आष्वासन में वह उससे कुछ भी करा सकती है, वह गौण पड़ जाएगी। उसके बदन का इतिहास-भूगोल जानते ही उनके बीच का रिश्ता बदल जाएगा। लेकिन......लेकिन......उसकी नजरों में वह यह भी पढ़ चुकी है कि वह लड़कियों के बदन का इतिहास-भूगोल जानने का अभ्यासी है। ऐसे में उसे अधिक समय तक ललचाए नहीं रखा जा सकता है। खासकर जब सुरेखा उसके सम्पर्क में आने की चेष्टा कर रही है तब। वह तो स्वयं सेक्स-एडिक्ट है। झट अपना बदन उसको इतिहास-भूगोल पढ़ने के लिए सौंप देगी और इस तरह झपट्टा मार वह शैल को उसके पंजे से छीन लेगी। अतः उसकी चाहत को अब पूरी करके ही वह अपना सिक्का उस पर जमाए रख पाएगी। इस तरह वह मानसिक रूप से बिल्कुल तैयार हो गई कि चाहे जैसे भी हो शैल को पकड़ से बाहर जाने देना नहीं है। वैसे मधुमिता स्वयं भी, जो युवकों को अंगुली पर नचाया करती थी, इस बार शैल के इशारों पर नाचने लगी थी।
उसके दूसरे नहीं, तीसरे दिन फिर संध्या के समय अपनी मारुति वैन को ड्राइव करती सुरेखा शैल के आवास पर आई थी।
‘‘हल्लो शैल जी।’’
‘‘हल्लो सुरेखा जी। कहिए क्या हाल है। कैसे आना हुआ।’’ एक कुर्सी उसकी ओर बढ़ाते शैल ने कहा था।
‘‘हाल तो मत पूछिए। बस बेहाल हूं। वैसे मैं हवाखोरी के लिए निकली थी तो सोची कि जरा शैलजी से मिलती चलूं। शायद उन्होंने सोच-विचार कर कोई निर्णय लिया हो।’’ कुर्सी पर बैठती सुरेखा बोली।
शैैल ने तब देखा था। जींस के टाइट पोशाक में सुरेखा के अंग-अंग स्पष्ट दिख रहे थे। कुछ इस तरह, जैसे वे निमंत्रण दे रहे हों कि देखते क्या हो केवल, जरा इन्हें चखकर भी तो देखो कि किस तरह ये शहद से भी अधिक मीठे हैं। अंगूरी शराब से भी अधिक मादक हैं। शैल तो सचमुच एक बार खो सा गया था। लेकिन तुरंत संभल गया।
‘‘नहीं, नहीं सुरेखाजी। अभी न तो विचार ही किया है और न कुछ निर्णय ही लिया है। वैसे अभी जल्दी भी क्या है ? समय पर विचार करके निर्णय ले लूंगा।’’
‘‘उफ डियर, समय ही कितना रह गया है। महीना-डेढ़ महीना गुजरना कोई बड़ी बात है क्या?’’
‘‘डोंट वरी सुरेखाजी। समय रहते मैं सब कर लूंगा।’’
‘‘खैर वह तो ठीक है। मुझे विश्वास है कि आप मेरे प्रस्ताव को नहीं ठुकराएंगे। वैसे आप अभी कुछ कर तो नहीं रहे हैं। चलिए न मेरे साथ, हवाखोरी कर आएंगे। मैं अकेली बोर भी होती रहती हूं। आप रहेंगे, तो कुछ खट्टी-मीठी बातें होती रहेंगी और दूर-दूर तक हम जंगल के किनारे तक हवाखोरी के लिए निकल चलेंगे।’’ सुरेखा ने जैसे स्पष्ट निमंत्रण दिया था।
शैल ने एक बार चाहा कि वह सुरेखा के साथ चला जाए। उसके बदन के इतिहास-भूगोल से परिचित हो आए। परन्तु झिझक गया। क्या ठिकाना, कोई ऑटोमेटिक कैमरा न फिट कर रखा हो इसने अपने वैन में। वैसे लोग कहते है कि काले शीशे वाली मारुति वैन उसकी गाड़ी नहीं, बल्कि एकांत स्थान में धीरे-धीरे हवाखोरी के बहाने चलती-फिरती सुहागसेज है। समय पर उसका विवेक जाग उठा था, वरना उस रोज सुरेखा पूरे ताम-झाम के साथ हरवे-हथियार से लैस उसका शिकार करने आई थी। उसे पालतू पशु बनाने आई थी।
‘‘एक्सक्यूज मी सुरेखाजी। मुझे बहुत काम है। सबसे बड़ी बात है कि मेरी मकान-मालकिन नन्दाजी मेरी मां की अंतरंग सहेली है और मेरी सह अभिभाविका भी। बिना उनकी अनुमति के मैं तो आपके साथ चलने से लाचार हूं। वह अभी घर पर हैं भी नहीं, जो उनसे अनुमति ले लूं। इसलिए कृपया मुझे माफ करेंगी।’’ कहते हुए शैल ने हाथ जोड़ लिये थे।
‘‘ओके डियर। वैसे मैं समझ रही थी कि आज अकेली हूं इसलिए आप साथ देंगे।’’ मायूस होती सुरेखा बोली।
‘‘सॉरी सुरेखाजी। मैं साथ नहीं दे सका।’’ शैल ने पुनः हाथ जोड़ कर कहा।
सुबह इसकी पूरी रिपोर्ट मधुमिता को मिल गई तो वह दौड़ी-दौड़ी शैल के पास आई।
‘‘सुनती हूं कि कल सुरेखा फिर आई थी ?’’ बेकल सी मधुमिता ने पूछा और जायजा लेने लगी कि कहीं वह उसके किले को डेमेज तो नहीं करके गई है।
‘‘आई तो थी।’’
‘‘क्या कह रही थी ?’’
‘‘वही पुरानी बातें।’’
‘‘मेरे बारे में भी कुछ कह रही थी क्या ?’’
मधुमिता ने कल ही सुरेखा की खासमखास सहेली वन्दना को बहुत कुछ खट्टा-मीठा सुरेखा के बारे में कह सुनाया था। कहा था, ‘‘अब अजय और अवध पुराना पड़ गया अथवा घिस गया है क्या, जो तेरी सहेली सुरेखा नये प्रेमी के लिए शैल के आगे-पीछे होने लगी है?’’ इसी से उसने पूछ लिया कि सुरेखा ने उसके बारे में भी कुछ कहा है क्या ?
उसके इस कथन का विश्लेषण कर शैल ने अपने अंतर में अनुमान लगा लिया कि लोहा पूरा गर्म है। इसलिए अभी ही चोट लगाना ठीक होगा।
‘‘हूंह क्या करेंगी उसे सुनकर आप ? छोड़िए भी, बकने दीजिए उसे।’’
‘‘फिर भी बोलिए न।’’ खुशामदी स्वर में वह बोली।
‘‘मैंने कहा न कि उसे छोड़िए भी।’’
‘‘ओह कह ही दीजिएगा तो कौन मैं उससे झगड़ा करने जाऊंगी ? वैसे आपको मेरी कसम है कहिए भी तो कि उसने क्या कहा ?’’
‘‘वह लीजिए। आपने कसम दे डाली, तब तो कहना ही पड़ेगा। वह कह रही थी कि आपको मधुमिता के पास ऐसी कौन-सी चीज मिली है, जो मेरे पास नहीं है ? जरा साथ चलकर देखिए भी तो कि सुरेखा के पास आनन्द का कौन-सा सागर है। ’’ शैल सफेद झूठ बोल गया था।
‘‘ऐ साली रे। इसलिए अपना सुहाग कक्ष साथ ले आई थी।’’ अनायास मधुमिता के मुंह से निकल पड़ा था। फिर संभल कर बोली, तो...तो....आपने क्या जवाब दिया ?’’
‘‘मुझे तो लगा कि उसका झोंटा पकड़कर उसे दो लात दूं और कुछ ऐसा कर दूं जैसा लक्ष्मण ने सूर्पणखा के साथ किया था। पर अपने क्रोध को किसी तरह संयत किया और कहा कि सुरेखा जी अभी तो इसके लिए मेरे पास समय नहीं है। इसके बाद वह चली गई थी।’’
‘‘साली वेश्या कहीं की।’’ फिर अनायास मधुमिता के मुंह से निकल पड़ा था।
‘‘अभी छोड़िए भी उसे। वैसे आपसे कुछ काम था। कॉलेज में मिलिएगा ?’’
‘‘जरूर...जरूर। क्यों नहीं मिलूंगी ? दोपहर बाद फ्री हूं।’’ मधुमिता ने कहा।
इसके बाद वह चली गई थी। दोपहर के बाद शैल उसे खोजने लगा था। परन्तु वह न तो क्लास में थी, न लाइब्रेरी में अथवा कैंटीन में। वैसे इक्की-दुक्की को छोड़कर बाकी सब छात्राएं जा चुकी थी। यों तो शैल यह भी समझ लेता कि मधुमिता भी चली गई, परन्तु उसका स्कूटर वहां मौजूद था। मतलब वह यहीं कहीं थी। तभी एक छात्रा छात्राओं के कॉमन रूम से बाहर निकली।
‘‘हल्लो मिस आरती। आपने मिस मधुमिता को कहीं देखा है ?’’ शैल ने उससे पूछा था।
‘‘यस मिस्टर। मधुमिता जी कॉमन रूम में हैं। क्या बुला दूं उन्हें ?’’
‘‘कृपया, यदि आपको तकलीफ न हो तो बुला दीजिए।’’
‘‘नो-नो-नो। इसमें तकलीफ कैसी ? लीजिए मैं बुला देती हूं।’’ यह कहती वह छात्रा गर्ल्स कॉमन रूम में गई और कुछ ही क्षण बाद निकलकर बाहर आ गई।
‘‘वह तुरंत आ रही हैं।’’ कहती वह छात्रा गेट की ओर बढ़ गई थी।
उसके कुछ ही क्षण बाद मधुमिता आती दिख पड़ी थी। आधुनिक सलवार सुट में सजी आज वह बहुत आकर्षक दिख रही थी।
‘‘एक्सक्यूज मी शैलजी। वैसे आपको कुछ अधिक प्रतीक्षा करनी पड़ी क्या ?’’ पास आती मधुमिता बोली थी।
‘‘मत पूछिए, कहां-कहां नहीं ढूंढा मैंने आपको ? बाद में पता चला कि आप गर्ल्स कॉमन रूम में ही थीं।’’
‘‘हां-हां, मैं कॉमन रूम में ही थी।’’
‘‘क्या कर रही थी आपलोग वहां ? कोई मीटिंग चल रही है क्या ?’’
‘‘नो-नो मिस्टर। बस, तीन-चार लड़कियां ही तो थीं।’’
‘‘बस तीन-चार लड़कियां ? फिर क्या कर रही थीं आपलोग वहां ? आपलोग कहीं लेस्बियन-एडिक्ट तो नहीं है ?’’
‘‘ओह, नो-नो-नो मिस्टर। कम से कम मैं अननेचुरल एडिक्ट नहीं हूं। अननेचुरलिटी मेरी पसंद नहीं है।’’
‘‘ओह मैं समझा। तो गोया आप केवल नेचुरल पर ही....’’ कहते-कहते शैल बीच में ही रुक गया।
मधुमिता ने इस पर एक अर्थभरी दृष्टि उसपर डाली थी। फिर धीरे से मुस्कुरा भर दी थी। असल में वह भी उस दिन सद्वः ऋतुस्नाता थी और इसलिए काफी तरंग एवं रोमांटिक मूड में थी।
‘‘एक्सक्यूज मी मधुमिताजी। बोलते-बोलते मैं न जाने क्या से क्या बोलने जा रहा था।’’ शैल ने कुछ सकुचाए से स्वर में कहा था।
‘‘ओह, इसमें एक्सक्यूज की क्या बात है शैल जी ? कभी-कभी बोलते-बोलते अनायास दिल की बात जुबां पर आ जाती है।’’
‘‘खैर छोड़िए उसे। चलिए कैंटीन में बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ बातें करेंगे।’’ शैल ने तब कहा था।
‘‘मैं तो कहती हूं आज पार्क में चलिए। वहीं किसी निर्जन स्थान में बैठकर मूंगफली के छिलके छिल-छिल कर खाते हुए हम बातें करेंगे।’’ मधुमिता ने कहा।
‘‘ओके। फिर वही सही। चलिए पार्क में ही चलें।’’ शैल भी आज सुबह से ही मूड में था। खासकर यह देखकर कि मधुमिता आज समर्पण की मुद्रा में दिख पड़ती है।, उसकी कामनाएं तरंगित हो चुकी थी।
उसके बाद वे पार्क चले गए। खोमचे वाले से भूनी हुई मूंगफली ली गई और वे एक निर्जन से स्थान में एक झाड़ी के पीछे हरी-हरी दूब पर जा बैठे। मूंगफली बीच में रख दी तथा दोनों मूंगफली के छिलके छिलकर दाने मुंह में खाने तथा छिलके एक कागज के ठोंगा में रखते जाने लगे। पार्क में मूंगफली खाने वाले छिलके इसी तरह ठोंगा में रख कर बाहर डस्टबिन में लाकर डाल देते हैं, ताकि पार्क में छिलके जहां-तहां फेंके नहीं रहें।
‘‘मधुमिता जी। वैसे एक बात मैं पूछूं ? आप बुरा तो नहीं मानेंगी न ?’’ शैल ने तब मधुमिता को टटोलने के लिए पूछा था।
‘‘आप भी कमाल की बात करते हैं शैल जी। भला मैं बुरा क्यों मानूंगी ? आपको जो पूछना हो बेधड़क पूछें।’’
‘‘वैसे कोई खास बात नहीं है। बस मैं जानना चाह रहा था कि आजकल अपने देश में भी जो ‘‘लिव-टुगेदर’’ (बिना शादी किए पति-पत्नी की तरह एक साथ रहना) और डेटिंग (विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध) का रिवाज चल पड़ा है, उसके बारे में आपका क्या ख्याल है ?’’ आखिर चुभता हुआ सा प्रश्न शैल ने पूछ ही डाला था।
‘‘देखिए शैैल जी, वैसे तो कहा जाता है कि ये संस्कृति अपने देश में विदेशों से आयातित संस्कृति है, जबकि कमोवेश प्राचीन काल में अपने देश में भी यह प्रचलित था। रखैल या उपपत्नी प्रथा, नियोग प्रथा इत्यादि प्रथाएं इसी की परिधि में आती हैं। भीम का हिडिम्बा के साथ बिना विवाह के रहना जिससे घटोत्कच का जन्म हुआ इसके प्रमाण में लिया जा सकता है। उसी तरह कुंती द्वारा विवाह पूर्व कर्ण को जन्म देना तथा मत्स्यगंधा द्वारा वेदों के संकलनकर्त्ता व्यासजी को जन्म देना एक तरह से डेटिंग का ही फल था।
खैर प्राचीन काल में जो भी हुआ अथवा होता होगा, हाल के समय में यह लिव-टुगेदर एवं डेटिंग संस्कृति हमारे देश के महानगरों एवं कतिपय नगरों में भी चलने लगी है।
वैसे सच पूछा जाए तो विवाह परंपरा का आविर्भाव और नारियों पर यौन संबंधी पाबंदियां, किसी भी नारी के गर्भ से उत्पन्न होने वाली संतान में किसी पुरुष विशेष का पितृत्व अक्षुण्ण रखे जाने के प्रावधान ही हैं। चूंकि समाज तब मातृसत्ता से परिवर्तित होकर पितृ सत्तात्मक समाज हो रहा था, इसीलिए ये पाबंदियां तब सचमुच बहुत जरूरी थी। कालान्तर में इसी के बहाने धर्म के ठेकेदारों ने, नीति निर्णायकों ने, समाज के पुरुष कर्णधारों ने जहां पुरुषों की यौन आकांक्षाओं एवं यौन स्वच्छंदता को छुआ तक नहीं (एक पुरुष एक साथ कई पत्नियां रख सकता है या अनेक स्त्रियों से यौन-सम्बन्ध रख सकता है यह प्रावधान रहने दिया) वहीं नारियों की यौन आकांक्षाओं को, उनकी यौन स्वच्छंदता को एकदम कुचलकर रख दिया गया। इस हद तक कि मृत पति की युवती विधवा को भी पुनर्विवाह का अधिकार नहीं दिया गया। उसके पुनर्विवाह को अधर्म और उस स्त्री को धर्मच्युत होना माना गया। अर्जुन गीता में कहते हैं -
‘‘अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः,
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः’’
अर्थात् इस तरह धर्मच्युत हुई स्त्रियां वर्णसङ्कर (जिसका सही अर्थ होना चाहिए जिस संतान में पितृत्व निश्चित न रहे) उत्पन्न करती है।
तब के समाज ने इसीलिए नारियों को स्वावलंबन और उसकी वैयक्तिक स्वतंत्रता का अपहरण कर उन्हें पूर्णरूपेण पिता, पति और पुत्र पर पराश्रित कर डाला। नीतिवचन में कहा गया है-
‘‘पिता रक्षति कौमारे, भर्ता रक्षति यौवने
पुत्रस्तु स्थविरे भावे, न स्त्री स्वतंत्रमर्हति’’
अर्थात् लड़कियां जब तक कुंवारी रहती हैं पिता की अभिरक्षा में, युवावस्था होने पर पति की अभिरक्षा में और वृद्धावस्था होने पर पुत्र की अभिरक्षा में रहती हैैं। स्त्रियों को कभी स्वतंत्रतापूर्वक रहने का हक नहीं दिया गया है।
इन सब पाबंदियों के कारण नारी-शिक्षा तब नहीं के बराबर थी। समाज में गुरुकुल या पाठशलाएं लड़को के लिए थी। उच्च से उच्च शिक्षा भी लड़के प्राप्त करते थे, परन्तु लड़कियों के लिए कोई गुरुकुल या पाठशाला नहीं के बराबर थी। पुत्रियों का वय किशोर होते ही उनकी माएं अथवा अन्य अभिभाविकाएं उन्हें पाक-कला की शिक्षा तथा अधिक से अधिक नारियों पर जो आचार संहिता एवं यौन संबंधी पाबंदियां हैं, उसकी शिक्षा भर देना अपना कर्त्तव्य समझती थी। पाठशाला का मुंह देखना भी तब लड़कियों के लिए संभव नहीं था। इसलिए नारियां तब अशिक्षित ही हुआ करती थीं। यह दीगर बात है कि तब भी गार्गी, लोपामुद्रा, विश्ववारा या विद्योत्तमा जैसी कुछ नारियां विदुषी हुईं, परन्तु उन्हें अपवाद स्वरूप ही लिया जा सकता है।
उस जमाने के विपरीत आज नारी-शिक्षा अपने चरम उत्कर्ष पर है। न केवल विदेशों में, बल्कि अपने भी देश में लड़कियां पठन-पाठन, कला-विज्ञान, सृजन-सत्ता संचालन, देश रक्षा से लेकर अंतरिक्ष तक के क्षेत्र में लड़कों से कंधा से कंधा मिला बल्कि कई क्षेत्र में लड़कों को पीछे धकेलती हुई आगे बढ़ रही है। उच्च से उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।
इस संबंध में लड़कियों के सामने सर्वप्रथम यह समस्या उठ खड़ी हुई थी कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने या उच्च ट्रेनिंग लेने के लिए समय तो चाहिए और ध्यान केंद्रित भी तो होना चाहिए, जबकि भाषा ज्ञान अथवा प्राथमिक ज्ञान होते-होते ही लड़कियां वयस्क हो जाती हैं। प्रकृति उनमें सृजनात्मक प्रवृत्तियां भरने और उन्हें पुष्ट करने लगती हैं और ये प्रवृत्तियां उनके शिक्षा ग्रहण करने अथवा ट्रेनिंग लेने में बाधक होने लगती हैं। चूंकि यह प्रवृत्ति जिसे विहार की प्रवृत्ति अथवा काम-प्रवृत्ति भी कहा जा सकता है, बड़ी जबरदस्त होती है और इसका शमन किए बिना कोई शिक्षार्थी अथवा शिक्षार्थिणी ठीक उसी तरह आगे नहीं बढ़ सकती है, जिस तरह योगी बिना समुचित विहार के साधना नहीं कर पाता है।
खैर जो भी हो, सबसे पहले पश्चिम के देशों ने महसूस किया कि अपनी आधी आबादी यानी महिलाओं को अशिक्षित और अकुशल (अनट्रेंड) रखकर हम उन्नति नहीं कर सकते, इसलिए उन्होंने नारी शिक्षा पर जोर दिया और वयस्क हो जाने पर अवरोध पैदा करने वाली यौन संबंधी पाबंदियों में ढील दे दी, जिसे हम कहने लगे कि वहां यौन-स्वच्छंदता है। काफी उम्र तक लड़कों के साथ लड़कियां भी पढ़ने लगी या किसी कार्य में दक्षता हासिल करने लगी। ऐसे में यदि प्राकृतिक प्रवृत्ति उस पर हावी होने लगती तो वे किसी पुरुष मित्र के साथ कहीं तफरीह कर आती थी। वहां का समाज इसे बुरा नहीं मानने लगा था। वैसे अधिक उम्र की लड़कियों के ऊपर यौन संबंधी पाबंदियां भी लेस्बियन संस्कृति की जन्मदात्री है। फिर आर्थिक दृष्टि से कम खर्च एवं जबरदस्तियों से सुरक्षा के लिए कामकाजी लड़के-लड़कियां या छात्र-छात्राएं बिना ब्याह किए पति-पत्नी जैसे साथ रहने लगे, जिसका नाम उन्होंने लिव टुगेदर या लिव इन रिलेशन दे रखा है। इससे रहने के किराए में और खाने के खर्च में कमी के साथ-साथ अकेली लड़की को किसी अन्य पुरुष द्वारा जबरदस्ती किए जाने या अभद्र व्यवहार किए जाने से निजात मिलती है। इस तरह विवाह पूर्व गर्भपात को अथवा यौन संबंध को उन देशों में अपराध या धर्मच्युत होना नहीं माना जाता था।
कालान्तर में जब विज्ञान ने समाज को अनेक प्रकार की गर्भ निरोधक औषधियां एवं उपकरण दिए, जिससे बिना इच्छा किए शादीशुदा पति-पत्नी को भी संतान नहीं हो सकती है, तब हमारे देश के महानगरों में यह संस्कृति चलने लगी है। मतलब अवैध गर्भ का भय नहीं रहने से उन महानगरों की युवतियां बोल्ड होने लगी। पुरुषों के लिए बोल्ड होने का तो सवाल ही नहीं है, वे तो सदा से ही बोल्ड हैं।
खैर मैं फिर भी ‘‘लिव-टुगेदर’’ संस्कृति को रखैल संस्कृति के समान मानती हूं और यह हमारे समाज में फिट नहीं बैठता है, परन्तु डेटिंग संस्कृति में कोई वैसी खास आपत्ति मुझे नहीं है। पठन-पाठन में लीन अथवा दहेज-विभीषिका के कारण अविवाहित युवतियां यदि डेटिंग जैसी प्रथा में कुछ लिप्त हैं, तो उसे मुख्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्राकृतिक प्रवृत्तियों का शमन अथवा सेहत एवं मानसिक संतुलन के लिए एक निमित्त मात्र मानती हूं। वह भी जरूरी नहीं कि हर छात्रा या युवती इसे अपनाए। इंद्रियों को अपने-अपने वश में रखने की शक्ति पर यह निर्भर है। जहां तक मेरा सवाल है तो मैं डेटिंग को बुरा नहीं मानती हूं।’’ मधुमिता ने इस तरह एक लम्बी-चौड़ी तकरीर के बाद स्पष्टतः संकेत दे दिया था कि जनाब यदि तुम उसके लिए भी इच्छुक हो तो मैं तो वह चाह ही रही हूं।
मधुमिता की बातों ने जहां शैल को भी प्रभावित किया, वहीं अंतिम वाक्य में उसकी स्वीकृति ने उसे बहुत उत्साहित भी किया। आज उसका मूड काफी रोमांटिक था।
‘‘मधुमिता जी, क्यों न चलकर किसी होटल में आज हम डिनर करें ?’’
‘‘किसी होटल में ? क्यों किसी होटल में ? यहां से लगभग सात किलोमीटर दूर जंगल के आसपास मेरे पिताजी ने एक बढ़िया सा फर्म एवं फार्म हाउस बना रखा है। उसकी देख-रेख के लिए एक ग्रामीण दम्पति है। वहीं बगल में बने सर्वेन्ट क्वार्टर में वे रहते हैं। बड़े सीधे-सादे हैं वे। हम क्यों न खाना पैक कराकर वहीं ले चलें। वहां हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं। होटलों जैसा भीड़-भड़क्का नहीं। वहां केवल हम दोनों होंगे। कोई रोकने-टोकने, ताकने-झांकने वाला नहीं। होटलों में तो पैसे भी लगेंगे, अलावा कितने जाने-पहचाने मिलेंगे और कई तरह के खतरे भी रहते हैं।’’ मधुमिता ने और भी स्पष्ट संकेत दे दिया। दरअसल मधुमिता ने ज्योंही सुना कि सुरेखा घात लगाकर शैल पर झपट्टा मारने की चेष्टा में है कि उसकी छठी इंद्रियां जग गई थी। वह शैल को किसी तरह खोना नहीं चाहती थी। इसलिए लुका-छिपी का खेल खत्म कर अब वह शैल पर झपट्टा मारने के लिए तैयार हो चुकी थी। उसे डर था कि यदि उससे पहले सुरेखा ने उसपर झपट्टा मार दिया तो वह उसे अपने चंगुल में बुरी तरह कस लेगी। जिस तरह उसने कई प्रोफेसरों, कहा तो यहां तक जाता है कि अधेड़ प्रिंसिपल को भी अंतरंग क्षणों का चित्र ऑटोमेटिक कैमरा से लेकर उन्हें अपने चंगुल में फांस रखा है। इसीलिए वह शैल पर झपट्टा मारने का अवसर तलाश ही रही थी कि आज शैल स्वयं वह अवसर उसे देने के लिए उतावला था।
‘‘ओके मधुमिता जी। तो फिर वहीं चला जाए।’’ शैल ने भी स्वीकृति दे दी।
उसके बाद खाना पैक करा वे दोनों मधुमिता के स्कूटर से ही फार्म हाउस गए। ग्रामीण दम्पति सभी सुविधाएं मुहैया करा अपने क्वार्टर में चले गए। इसके बाद एक दूसरे से छेड़खानी करते उन दोनों ने भोजन करना आरम्भ किया। फिर तो भोजन समाप्त होते होते पता नहीं सद्यः ऋतुस्नाता होने के कारण मधुमिता ने शैल पर झपट्टा मारा अथवा शैल ने ही झटके से नारी देह की अनुपलब्धता के कारण मधुमिता पर झपट्टा मारा, भोजन समाप्ति के बाद एक-दूसरे से गूंथे वे एक-दूसरे पर अपना जोर आजमाने की चेष्टा करने लगे थे। पहले हल्की-सी हवा चली फिर वह आंधी बनी और देखते ही देखते आंधी-तूफान बनकर सब कुछ झंझोड़ता-मरोड़ता झटके से गुजर गया था।
‘‘देखिए शैल जी। मैं आपको फिर सावधान कर देना चाहती हूं कि सुरेखा सेक्स एडिक्ट है और खतरनाक नागिन है। उससे बच कर ही रहिएगा।’’ चलते वक्त मधुमिता ने कहा।
‘‘मैं उस नागिन को इस तरह नचाऊंगा कि लोग देखते रह जाएंगे।’’ जवाब में शैल ने कहा था।
इसके बाद ही छात्र यूनियन के चुनाव की घोषणा हो गई थी।

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