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आक्रामकता की मिसाल हैं सौरभ

दीपक अंबष्ठ
क्रिकेट के मैदान पर अब कभी प्रिंस आफ कोलकाता नजर नहीं आयेंगे, लेकिन उन्होंने भारतीय क्रिकेट में लड़ने का जो जज्बा पैदा किया है वह कभी नहीं भूलेगा। सौरभ गांगुली एक ऐसा नाम जो अब खेल के मैदान से विदा हो चुका है, लेकिन उसकी उपलब्धियां किताबों में दर्ज आंकड़ों से बढ़ कर है. खिलाडी के रूप में सौरभ के आफ साइड के स्टोक्स पर ज्यॉफ बॉयकाट जैसे धुरंधर ने कहा था कि क्रिकेट मैदान पर आफ साइड के स्टोक्स को देख लगता है भगवान के बाद प्रिंस आफ कोलकाता ही है. बॉयकाट गांगुली के खेल और उनके तौर तरीके के प्रशंसक रहे हैं. लेकिन हालिया दिनों में जब सौरव ने अपने संन्यास की घोषणा कर दी तो पूर्व पाकिस्तानी दिग्गज इंजमाम समेत प्राय : क्रिकेट खेलने वाले सभी देशों के वर्तमान और पूर्व टेस्ट क्रिकेटरों ने एक स्वर में अपनी राय दी कि सौरभ गांगुली बेहतरीन या यूं कहें सबसे सफल और आकर्मक कप्तान हैं और खिलाडी के रूप में गांगुली की उपलब्धियां रिकार्ड बुक की शोभा है, लेकिन कुछ चीजें हैं जो रिकार्ड बुक में नहीं खेल समझने और खिलाडियों के दिलों में दर्ज होती हैं. ये बात है गांगुली के भीतर बैठी उनकी आक्रामकता जो बतौर कप्तान मैदान पर खुल कर सामने आयी. विपक्षियों ने चाहे उन्हें कितना भी कोसा लेकिन सौरभ ने उन्हें मैदान पर उन्हीं की भाषा में जवाब दिया. यह सौरभ की कप्तानी का ही कमाल था कि मैदान के बाहर और भीतर कुख्यात आस्ट्रेलियाई खिलाडी पनाह मांगते नजर आये. लार्डस के मैदान में शर्ट खोल कर हवा में लहराते हुए दौड़ पड़ना या स्टीव वॉ को टॉस के लिए खड़ा रखवाना- ये सब के सब सौरव की तरकश के तीर ही तो थे. जिनसे सामने वाला मानसिक रूप से पिट जाता था. सौरभ ने न सिर्फ भारतीय क्रिकेट को आक्रामकता दी बल्कि उन्होंने हार से घृणा भी सिखाया. यही वजह है कि भारतीय क्रिकेट खिलाडियों की मैदान पर शारीरिक भाषा ही बदल देने और आतंकित नजर आने वाले खिलाडी शेर की तरह हमलावर हो गये. पहली बार मीडिया ने भारतीय टीम को सौरभ सेना के नाम से नवाजा. क्योंकि गांगुली की कप्तानी में मीडिया को पहली बार सैनिकों की आक्रामकता नजर आयी. सौरभ की कप्तानी में हार जीत का आंकड़ा अपनी जगह लेकिन यह निर्विवाद है कि उनकी टीम जहां गयी- अगर हारी भी तो खिलाड़ी पस्त नहीं दिखे क्योंकि उन्हें पता था कि कप्तान के दिमाग में पलटवार की योजनायें कौंध रही होंगी. टीम जरूर वापसी करेगी और वैसा ही हुआ भी. पिछड़कर भी लौटने का जज्बा गांगुली में ही था. लेकिन आज वे भारतीय टीम और क्रिकेट से विदा हो चुके हैं, उनकी वापसी नहीं होगी क्योंकि दादा ने सब देख समझ लिया है. उन्हें पता है कि उन्होंने अपनी पारी शानदार ढंग से खेली है. आस्ट्रेलिया के खिलाफ अंतिम सिरीज यह बताने के लिए काफी है कि सौरभ में अभी बहुत आग है. लेकिन यह भारतीय क्रिकेट की राजनीति का घिनौना चेहरा ही है, जिसने समय से पहले एक योद्धा को रणभूमि छोड़ने पर बाध्य किया है. बहरहाल भारत में क्रिकेट के साथ गांगुली हमेशा याद रहेंगे. आने वाली पीढ़ी उन्हें किताबों से जानेगी, लेकिन वर्तमान पीढ़ी के दिलों पर उनका राज था, है और रहेगा. भले वे मैदान से बाहर क्यों न हों.
लेखक प्रभात ख़बर, धनबाद के स्थानीय संपादक हैं।
( यह लेख प्रभात ख़बर में प्रकाशित हुआ है।)

1 comment

Udan Tashtari said...

दादा को भविष्य के लिए शुभकामनाऐं.

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