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रोने पर पहरा

मीनाक्षी सिन्हा

जहां है अख्श गम का
वहां होगा जरूर खुशियों का चेहरा
जहां है हंसने पर बंदिशें
वहाँ होगा जरूर रोने पर पहरा

जहां जिंदगी में है गहरा अंधेरा
वहां छुपा होगा जरूर स्वर्णिम सबेरा

जहां छिपा है अज्ञानता और असत्यता
वहां होगा जरूर गूढ़ ज्ञान तथा सत्य का चेहरा

फिर क्यों मनुष्य निराशा को
इस कदर करता है हावी अपने मन पर
जानते हुए यह कि
होता है हर अंधेरे के बाद
नया जगमगाता स्वर्णिम सबेरा।
क्रोधाग्नि
क्रोध एक ऐसी अग्नि है जो
सर्वस्व का विनाश कर देता है
चाहे वह प्राण हो या फिर हो भौतिकता
क्रोधाग्नि का कारण तो
बन जाता है अकारण भी
पर अगर रहे कारण तो
वह मिटा जाता है विचारों को
और पैदा करता है कितने
नाजायज बातों, कारणों को
क्रोध मस्तिष्क के अंदर पैदा कर ज्वाला
फूटने के लिए बना देता है ज्वालामुखी
जो उगलने लगता है लावा
और बह जाता है संपूर्ण अस्तित्व
बस रह जाता है विनाश
और अंतिम सत्य रहता है शून्य।

कवयित्री शास्त्रीय गायिका हैं। खोरठा कैसेट ‘झारखंडेक फूल’ के गानों में भी अपनी आवाज दी है।

14 comments

anand anal said...

bahut achchhi kavita.

श्यामल सुमन said...

हमने सहरा में भी समन्दर का नजारा देखा।
मिलनेवाले को तो पत्थर में खुदा मिलता है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

seema gupta said...

जहां जिंदगी में है गहरा अंधेरा
वहां छुपा होगा जरूर स्वर्णिम सबेरा
" very hopefull and inspiring thoughts.."

regards

अनुपम अग्रवाल said...

फिर क्यों मनुष्य निराशा को
इस कदर करता है हावी अपने मन पर
जानते हुए यह कि
होता है हर अंधेरे के बाद नया जगमगाता स्वर्णिम सबेरा।
zindagee ke sawaalon ko utthatee huee kavita,badhaai.

Sarita Chaturvedi said...

KYA KIAA JAYE.....JAB GYAN HO..AUR MAN KAHE KI NAHI AGYAANI BANE RAHO...MAN BAHUT JIDDI HOTA HAI..US INSAN KO KYA KAHIYE JISE KISI KE AASUWO KA ASAR NAHI HOTA..WAQUI LIKHNA..MAHSOOS KARNA...SAB ALAG HAI

Pawan Kumar said...

ज़बरदस्त शख्शियत के मालिक हैं हैं आप इतनी कम उम्र में इतना सब कुछ भाई कमाल है आपका हुनर कविता अच्छी लगी आपके पोस्ट भी बेहतरीन हैं..word veification is hurdle to write u erase it

संगीता-जीवन सफ़र said...

फिर क्यों मनुष्य निराशा को
इस कदर करता है हावी अपने मन पर
जानते हुए यह कि
होता है हर अंधेरे के बाद नया जगमगाता स्वर्णिम सबेरा। मीनाक्षी सिन्हाजी को इस आशावादी कविता के लिये और आपको यहां इसकी प्रस्तुति के लिये बहुत-बहुत बधाई!

PREETI BARTHWAL said...

अच्छी रचना है।

sandhyagupta said...

Arthpurna....

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

बहुत अच्छी रचना है । भावों और िवचारों का प्रखर प्रवाह है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

मुकेश कुमार तिवारी said...

क्रोधाग्नि, एक बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ती है. विशेषतः " क्रोधाग्नि का कारण बन जाता है अकारण ".

बधाई.

मुकेश कुमार तिवारी

पूनम श्रीवास्तव said...

Suneelji,
Mere blog par ane ke liye dhnyavad.Apke blog par prakashit Meenakshi sinha ji kee kavita men kafee akrosh..barood sabhi kuchh hai..Asha hai apke blog par age bhee aisee rachnaen padhne ko milengee.Shubhkamnaon ke sath.

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Manthanji,
Apke blog par prakashit Meenakshee ji ki kavita men vidrohee svar hone ke sath hee kavita ke bhavon ke anuroop shabdon ka chunav hee is kavita kee khoobsooratee hai.Badhai.
Hemant Kumar

Anand kumar said...

achchhi lines hai...
badi shaandar abhivyakti hai...
aisi hi kalmo ke saath aate rahe..

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