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दीपक रे ! जलते रहना

आनंद अनल

एक बार फिर गयी दिवाली चमकती हुई, उजाला बिखेरती हुई। दिवाली उत्सव की प्रतीक है, तो जीवन में स्वच्छता, शुचिता, पवित्रता का संदेशवाहक भी। संदेश ग्रहण करना और बात है, मगर उत्सव मनाना हमारी संस्कृति है। युगों से हम अपनी संस्कृति, सभ्यता की रक्षा के लिए मिलजुलकर प्रयास करते रहे हैं. दिवाली उसी मिल्लत और एकजुटता का पर्व है और दीया इस पर्व का देदीप्यमान संदेशवाहक. दीया जलता है, रोशनी बिखेरने के लिए, जबकि जिंदगी उसी रोशनी के सहारे आगे बढ़ती रहती है मंजिल पर पहुंचने के लिए. दीया और मानव जीवन की यह सभ्यता परस्पर आदान-प्रदान से भी जुड़ी है. प्रकाश फैलाना दीये का स्वभाव है और मंजिल दर मंजिल आगे चलते रहना मानव जीवन की प्रकृति. आगे बढ़ने के लिए अंधेरे से जूझने की शक्ति चाहिए, प्रेरणा चाहिए. दीये की लौ जलकर भी हमें प्रेरणा की संजीवनी से लैस करती है, उजाला की ओर बढ़ने के लिए मार्गदर्शन करती है. तमसो मा ज्योतिर्गमय : सदियों से मनुष्य की यह कामना उसे प्रयत्न, आराधना, पूजा-अर्चना अध्यवसाय से जोड़े हुए है. दिवाली एक ऐसा ही अवसर है, जब हम अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने की कामना और सम्मिलित प्रयास करते हैं. यह सम्मिलित प्रयास अनेकता में एकता का बेजोड़ उदाहरण भी है. दिवाली को ज्योति पर्व भी कहा गया है. अंधकार से मुक्ति और प्रकाश के लिए हम दीया जलाते हैं, जो हमारे उल्लास के प्रदर्शन को दुगुना कर देता है. अराधना-उपासना के साथ हम एक बार फिर कर्मक्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए शक्ति संचय करते हैं. धन-दौलत की देवी लक्ष्मी की आराधना का भी उपयुक्त अवसर है दिवाली. ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी का आगमन अंधकार और प्रकाश के संधिकाल में होता है. अमावस्या की रात उल्लू पर सवार हो लक्ष्मीजी अपने भक्तों के दरवाजे पर विद्यमान होती हैं. दीप जलकर हम उनका स्वागत करते हैं. बचपन से लेकर अब तक इसी तरह के कहानी-किस्सों से दिवाली मनाने का जोश दुगुना होता रहा है. गांव की गलियों में यम का दीया का खेल हो या कपड़ों को बांधकर बनायी गयी लुकाठी जलाकर "दरिद्दर' बाहर करने की रस्म, हर मौके पर उल्लास छाया रहा. मुरझाया मन उस समय खिल उठता, जब गांव के बड़े-बुजुर्ग शान से लक्ष्मी की महिमा और "दरिद्दर' से मुक्ति पाने के उपायों का बखान करते. पूजा-अर्चना के महत्व के साथ दीये की रोशनी के "महात्तम' का वर्णन तो और भी रोचक होता था. ऐसे अवसर पर गुणवंती काकी का फरमान जारी होता. कहां से मिट्टी लाना है. दीया बनाने की जगह कौन सी होगी. कौन मिट्टी गूंधेगा, कौन सुखायेगा और कौन पूरे गांव में दीया बांटने का काम करेगा-सब कुछ गुणवंती काकी तय करती थी. हम बस खेलते-कूदते भूल से भी अगर दीये की मिट्टी से कोई खिलवाड़ कर बैठते तो गुणवंती काकी का कोपभाजन बनना पड़ता. गुणवंती काकी के खौफ से हमें हमारे बाबूजी अथवा मां भी नहीं बचा पाते. ऐसे अवसर पर गुणवंती काकी जो भी दंड देती, हम सबों को भुगतना पड़ता. दंडस्वरूप कभी हमें दूर से मिट्टी लाने को कहा जाता, कभी धूप में बैठकर बने बनाये दीये की रक्षा का भार उठाना पड़ता, तो कभी कान पकड़ कर उठ-बैठ करनी पड़ती. मगर सबसे बड़ी दंडात्मक कार्रवाई होती दीया बनाने के काम से अलग रहने का गुणवंती काकी का फरमान. हमलोग मन ही मन प्रार्थना करते कि दीया बनाने की तैयारी से लेकर दिवाली में दीप जलाने तक, अव्वल तो किसी तरह की गलती हो, अगर गलती हो ही जाय, तो गुणवंती काकी का कोपभाजन नहीं बनना पड़े. हर तरह की शरारत के लिए मशहूर गांव के बड़ों की टोली दिवाली के अवसर पर बिल्कुल शांत और अनुशासित नजर आती. दीया बन जाने के बाद भी खैर नहीं। चूंकि किस घर में पवित्र मिट्टी से बना कितना दीया जायेगा, यह भी गुणवंती काकी ही तय करती थी. कुम्हार का बनाया दीया कोई चोरी-छिपे ही जला पाता था. एक तो गुणवंती का खौफ, दूसरा लक्ष्मीजी के रुठ जाने का भय. घर-घर दीया बांटती बड़ों की टोली और आगे-आगे हाथ में छड़ी लिए गुणवंती काकी. गांव की गलियां हंसी-खुशी और बड़ों की किलकारियों से गूंज उठती. गरीबी, अभाव और तरह-तरह की चिंता कष्ट के बीच दिवाली के अवसर पर यह किल्लोर एक अनमोल खजाना जैसा महसूस होता था. इस खजाने को पाने के लिए बड़े तो बड़े, बूढ़े-बुजुर्ग भी लालायित रहते थे. दीया जलाने की रस्म भी पूरे तामझाम के साथ पूरी की जाती. गुणवंती काकी का नियम-कानून कड़ाई के साथ पालन होता. दीये में कितना तेल डाला जायेगा, पहला दीया किस देवी-देवता को चढ़ाया जायेगा, नैवेद्द, फूल-फल की थाली पीतल की होगी या कांसे की-इन सभी बातों में गुणवंती काकी का फरमान चलता था. कोई दीया बुझने पाये. रात भर दीया जलता रहे, इसकी मुकम्मल व्यवस्था होती. गुणवंती काकी हर घर में इस व्यवस्था को बनाये रखने की हिदायतें देतीं, रात भर दीया जलाने के महत्व समझाती. इस मान्यता को बार-बार दुहराती कि लक्ष्मीजी का आगमन रात के अंधेरे में होता है. मगर लक्ष्मी जी के स्वागत में दीया जलता रहना चाहिए, नहीं तो लक्ष्मी रुठकर दूसरे के घर की ओर रुख कर लेती है. इस विधान का पालन करने के लिए किसी अंधकारपूर्ण कमरे में लक्ष्मी की मूर्ति के आगे एक दीया जलता रहता. दीया बुझने पाये, इसकी देख-भाल के लिए घर की महिलायें जागती रहती. गुणवंती काकी घूम घूमकर रात भर जलते दीये का मुआयना करती. रात बीत जाती. जिसका दीया बुझ जाता, वह अपशकुन के भय से देवी-देवताओं के आगे माफी मांगने की मुद्रा में हाथ जोड़े खड़ा नजर आता. गुणवंती काकी उस आदमी की नादानी का ढिंढोरा पीटती हुई दिलासा देती. जलते दीये की रखवाली में सुबह हो जाती. मगर लक्ष्मीजी के दर्शन नहीं होते. फिर शुरू हो जाता साल भर का इंतजार. अब बडों की बारी थी. शरारती बडे गुणवंती काकी को छेड़ते हुए कुरेद कुरेद कर पूछते-"लक्ष्मीजी तो आयी नहीं, काकी. अब इस दीये का क्या करें. गुणवंती काकी आसमान की ओर निहारती हुई कहती-लक्ष्मीजी सबको दिखा कर नहीं आती, चुपचाप घर के किसी कोने में दुबक कर बैठ जाती है. तुम लोग क्या जानो। तभी कोई शरारती लड़का जोर जोर से गाने लगता-जगत भर की रोशनी के लिए, करोड़ों की जिंदगी के लिए...दीपक रे, जलते रहना। गाने को सुनकर गुणवंती काकी का कुम्हलाया चेहरा खिल उठता, चहकते हुई कहती- हां बिल्कुल सही गा रहा है। लक्ष्मी तो चंचल है. आती-जाती रहती है. मुख्य चीज है रोशनी..दीया जलाकर हम इसी रोशनी का आह्वान करते हैं, क्योंकि रोशनी है तो सब कुछ है.

7 comments

Udan Tashtari said...

सही कहा-रोशनी है तो सब कुछ है.

सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

-समीर लाल ’समीर’

संगीता पुरी said...

प्रकाश की अंधकार से जीत !
यही तो दीपावली की कहानी है !!
पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
जीवन प्रकाश से आलोकित हो !

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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
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अजित गुप्ता का कोना said...

सोने की लंका का परित्‍याग कर अपनी जन्‍मभूमि पर बसना, भ्रातृ प्रेम के लिए सुखों का त्‍याग करना ही दीवाली है। आज अपनी जन्‍मभूमि का त्‍याग कर विदेशी चकाचौंध को अपनाने की होड लगी है और हम अब कहने लगे हैं कि दीवाली रोशनी का त्‍योहार है।

Devendra Yadav said...

http://www.youtube.com/watch?v=1ZADwvQ0tQI

Aaron Thomae said...

Please read my blog and let me know what you think!

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Unknown said...

bhut sahi likha hai aap ne
thank you
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par aap ka swagat hai

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