माँ के गोद की पहली भाषा,
डॉ संगीता नाथ जी
सपनों की जीवित अभिलाषा।
पहचान हमारी बतलाती जो,
अभिमान हमारी मातृभाषा।
निज गौरव सम्मान है,
जड़ चेतन दिनमान है,
सीखी थी जो पहली वाणी,
उन शब्दों का आह्वान है।
माटी की महक में रची बसी,
विद्यापति के गीत की भाषा।
गाँवो की नदियों का कलकल,
शोर मचाते बरगद पीपल,
झूमर सोहर धान की रोपन,
हल रहट पाजेब की भाषा।
माँ के गोद की पहली भाषा,
अभिमान हमारी मातृभाषा।
डा०संगीता नाथ
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