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दानवीर सेठ किरोड़ीमल // बसन्त राघव // रायगढ़

दानवीर सेठ किरोड़ीमल
वर्तमान रायगढ़ छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी है, औद्योगिक नगरी के रूप में इसका तेजी से विकास हो रहा है।छत्तीसगढ़ के पूर्वी सीमान्त पर हावड़ा-बाम्बे रेल लाइन का यह जीवन्त नगर है।इसका एक दिलचस्प इतिहास है राजा चक्रधर सिंह और दानवीर किरोड़ीमल लोहारीवाला के नाम पर इसे विश्व-विख्यात ख्याति मिली हैं , रायगढ़ राज्य की स्थापना सन् 1668 के आसपास महाराष्ट्र चान्दा से विस्थापित राजा मदन सिंह ने की थी। पहले बुनगा बाद में राजा ने नवागढ़ी में "सतखंडा" की नींव डाली और राज्य को विकसित किया। बीसवीं सदी के शुरू में राजा चक्रधर सिंह ने उसे साहित्य और संगीत के लिए विख्यात किया। रायगढ़ नगर की प्रसिद्धि में एक और अमिट नाम है दानवीर सेठ किरोड़ीमल लाहरीवाले का , सच्चे अर्थों में वे आधुनिक रायगढ़ नगर के शिल्पी हैं। अगर उनके योगदान को हटाकर देखें तो रायगढ़ एक व्यवसायिक सामान्य स्तर का शहर ही है। हालाकि वर्तमान में वह एक औद्योगिक नगरी के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है।

             सेठ किरोड़ीमल ने यहां पहली बार अधिकाधिक मात्रा में स्कूल, काँलेज, पुस्तकालय, चिकित्सालय, बालमंदिर और बालसदन, भव्य मंदिर, धर्मशाला, कुआ-बावली और काँलोनियों का निर्माण कराया, इतना ही नहीं रायगढ़ शहर को औद्योगिक नगर के रूप में पहिचान दिलाने वाला प्रदेश का प्रथम जूटमिल रायगढ़ में उन्होंने ही स्थापित किया। सेठ किरोड़ीमल ने अपने बुध्दि-चातुर्य से यहां का माल कलकत्ता को भेजा। कठिन संघर्ष, व्यावसायिक बुध्दि के कारण उन्होंने अकूत सम्पत्ति प्राप्त की और अन्त में उसे जनता के हित में ही, सेवा कार्यों में लगा दिया। उनकी यह अप्रतिम सेवा उन्हें महान दानवीरों की श्रेणी में रख दिया, उनकी सेवाएं क्या कभी भुलाई जा सकती है ? 

           राजशाही खत्म होने के बाद सेठ किरोड़ीमल ने ही औद्योगिक नगर के रूप में रायगढ़ नगर की नींव रखी। सेठ किरोड़ीमल जैसे महादानी, समाजसेवक, विलक्षण व्यवसायी कौन थे, कहाँ से आए, उनका जन्म कहा हुआ, यह जानना बहुत दिलचस्प है। सेठ जी का जन्म हिसार (हरियाणा) के एक मध्यम वर्गीय परिवार में 15 जनवरी 1882 को हुआ था। कम आयु में ही उनमें कुछ कर गुजरने की खाहिस जागी। वे  कलकत्ता आकर छोटे-मोटे व्यापार करते थे, जहां उनके भाग्य का सितारा चमका। प्रो. आर.के. पटेल के शब्दों में " व्दितीय विश्वयुध्द के दौरान 1936 से 1942 तक सेठ किरोड़ीमल जी ने जापान एवं मित्र राष्ट्रो को युध्द की विभीषिका से कराहती जनता के लिए भारी मात्रा में खाद्यान्न दिया। उनकी दृष्टि में मानवता की सेवा ही सर्वोपरि थी। उनके हृदय में युध्द के पक्ष-विपक्ष का भेद नहीं था। " मेरे पापा डाँ० बलदेव जब प्रोफेसर के.के तिवारी के आग्रह पर सेठ किरोड़ीमल के ऊपर एक लम्बा लेख रहे थे तब पं. लोचन प्रसाद पांडेय के बन्धु पं. मुरलीधर पांडेय ने उन्हें बतलाया था "भारत स्वतंत्र हुआ, जब अंग्रेज भारत छोड़कर विदेश जा रहे थे , तब हुकमरानों को कलकत्ता में एक यादगार पार्टी दी गयी थी उसके प्रबन्धक थे श्री किरोड़ीमल , इससे प्रसन्न होकर अधिकारियों ने उन्हें कम्पनी के व्यवसाय में कुछ परसेंट का लाभ तय कर दिया था, इससे उन्होंने प्रभूत राशि कमाई। कठिन संघर्ष, व्यवसायिक तीक्ष्ण बुध्दिमत्ता ने ही उन्हें रायगढ़ आने के लिए उत्प्रेरित किया था। यहाँ उनका कारोबार बढ़ा और दिन दूनी रात चौगुनी कमाई होने लगी। उन्हें यहां सबकुछ मिला, पर वे निःसंतान थे अस्तु अब उनका ध्यान परोपकार की ओर लगा।
             सेठ किरोड़ीमल ने परोपकार के लिए अनेक महती कार्य किये हैं। कुछ प्रमुख इस प्रकार है:- अविभाज्य मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री रविशंकर शुक्ल एवं सेठ पालूराम धनानिया की प्रेरणा से उन्होंने रायगढ़ में 7 मार्च 1946 को गौरीशंकर मंदिर का शिलान्यास पं. शुक्ल के हाथ करवाया था। 13 मार्च 1946 को उन्हीं के हाथों "सेठ किरोड़ीमल धर्मादा ट्रस्ट" की स्थापना कराई गई। रायगढ़ में ही नहीं उन्होंने देश के विभिन्न स्थानों जैसे दिल्ली, मथुरा, मेंहदीपुर, (राजस्थान),  भिवानी(हरियाणा), पचमढ़ी, रायपुर, किरोड़ीमल नगर आदि नगरों में अनेक धर्मशाला एवं रैन बसेरा का निर्माण कराया जो कि उनके लोकापकारी कार्यों का जीवन्त उदाहरण है, देश का प्रसिद्ध झूला- मेला की शुरुआत भी उन्होंने गौरीशंकर मंदिर से की थी। यह संगमरमर पत्थर से निर्मित विशाल मंदिर है, इसका शिल्प पूर्णतया राजस्थानी है। इसके गर्भगृह के दीवालों पर सत्यम् के चित्र लोगों को पौराणिक गाथाओं की याद दिलाते हैं।

             रायगढ़ की बात चलती है तो मुझे सन् 1975 की याद आती है। उस समय हम लोग धर्मजयगढ़ में रहते थे और वही से जन्माष्टमी के दिन झूला मेला देखने के लिए सपरिवार रायगढ़ आये थे । उस समय पूरा शहर रोशनी से नहाया हुआ लग रहा था (आज भी झूलामेला में वही हाल रहता है) । झूलामेला देखने छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के अन्याय शहरों से लाखों श्रध्दालु आये हुए थे, आज भी भक्तों की संख्या लाखों में होती है और भीड़ इतनी रहती हैं, कि स्टेशन से लेकर मंदिर तक आने में कहीं भी पांव रखने की जगह नहीं रहती। मैं दो वर्ष पहले भी रायगढ़ आया था। पापा जी घर में नहीं थें। बीमार हालत में अकेले मम्मी ने मुझे के. जी. हास्पिटल रायगढ़ में भर्ती कराया था। यहीं मेरा निःशुल्क इलाज हुआ था। एक जुलाई 1947 को सेठ किरोड़ीमल ने महात्मा गांधी नेत्र चिकित्सालय का लोकार्पण राजर्षि पुरूषोत्तमदास टंडन से करवाया था, (वे पं. मुकुटधर पांडेय के मित्रों में थे) नेत्र चिकित्सालय के समीप ही असर्फी देवी महिला चिकित्सालय है सेठ किरोड़ीमल जी ने अपनी पत्नी के नाम से इसका निर्माण कराया था। इसका उद्घाटन भी पं. रविशंकर शुक्ल ने ही किया था। यह आधुनिक एक्सरे मशीनों से सर्वसुविधायुक्त अस्पताल था। यहाँ निःशुल्क इलाज किया जाता है। पहले अस्पताल का सारा खर्च ट्रस्ट व्दारा उठाया जाता था।

          शिक्षा के क्षेत्र में सेठ जी अत्यंत उदार एवं जागरूक थे। मेरे जीवन की एक घटना मुझे याद हैं, वह आर्दश बाल मंदिर से जुड़ा हुआ है, नवाकुवरों की शिक्षा के लिए इसे भी सेठ जी ने ही शुरु किया था। इसके एक प्रखंड में कथक नृत्य (ताडंव पक्ष) की शिक्षा पं. फिरतू महाराज यहाँ की बालिकाओं को वर्षों तक देते रहे। सन्  1975-76 की बात है पापा जी जब स्थानातरण में कोड़ातराई आए, तब उन्होंने अपना निवास रायगढ़ में रखा। उन्होंने स्कूल में दाखिला के लिए मुझे इसी बालमंदिर में लाये, वहाँ के वयोवृद्ध बोड़े, गुरुजी मेरा गठिला शरीर देखते ही, बिना कुछ जवाब सवाल के कह दिया, यह लड़का कमजोर है, यहाँ नहीं ले सकते, पिता जी दुखी हुए , बोले "बिना सवाल-जवाब के जांचे-परखे आपने ऐसा कैसे कह दिया? क्या आपको पहलवानी कराना है। स्काउट मास्टर के नाम से प्रसिद्ध बोड़े सर के मन में चाहे जो रहा हो, जो भी परिस्थिति रही हो, उन्होंने मुझे भर्ती नहीं किया। मुझे सरस्वती शिशु मंदिर में दाखिला मिला, नटवर हाईस्कूल से मैंने मैट्रिक और किरोड़ीमल विज्ञान कला महाविद्यालय से अपने बड़े भाई शरद के साथ हिन्दी में एम.ए तक की डिग्री ली। इस तरह मैं इस शहर से जुड़ा रहा। नटवर स्कूल रायगढ़ के सामने खेल का बड़ा मैदान था, जो अब  कई प्रभावशील लोगों व्दारा काट छाट कर छोटा कर दिया गया है। खैर...... यह स्कूल और मैदान पंतगबाजी, जालीदार भवन भी सेठ जी की ही कृपा का फल हैं।

          रायगढ़ में आचार्य विनयमोहन शर्मा, कविवर रामेश्वर शुक्ल अंचल जैसे नामी-गरामी विव्दान प्राचार्य के रूप में कार्य कर चुके है । पं. प्रभुदयाल अग्निहोत्रि जैसे संस्कृत के महापंडित भी प्रोफेसरी कर चुके है। इस विद्यालय से पं. मुकुटधर पांडेय और जनकवि आनंदी सहाय शुक्ल से भी गहरा सम्पर्क रहा है।
            रायगढ़ के जिस कोने पर चले जाइये उनके यादगार के रूप में कई इमारतें सेठ किरोड़ीमल के नाम पर ही मिलेंगी। लेकिन छत्तीसगढ़ ,मध्यप्रदेश, बिहार और उड़ीसा में तथा अन्यान्य जगहों पर सेठ किरोड़ीमल के नाम पर ईमारतें खड़ी हैं यदि पाँलिटेक्निक काँलेज रायगढ़ की चर्चा न की जाय तो इस लेख का उद्देश्य अधूरा रह. जायेगा। सेठ किरोड़ीमल ने रायगढ़ में मध्यप्रदेश के प्रथम पाँलिटेक्निक काँलेज का निर्माण कराया था, जो कि आकार में किसी छोटे मोटे विश्वविद्यालय का स्मरण कराता है। छत्तीसगढ़ - मध्यप्रदेश का पोलिटेक्निक कालेज होने की वजह से यहां अब तक लाखों इंजीनियर तैयार हो चुके हैं, यहाँ विश्व प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री  डाँ० आर.जी. बुलदेव भी प्रथम प्राचार्य के रूप में सेवा दे चुके है। सेठ  किरोड़ीमल ने इस काँलेज की स्थापना सन् 1955 में की थी। इसका उद्घाटन देश के प्रथम राष्ट्रपति डाँ०राजेंद्र प्रसाद ने किया था। समारोह की अध्यक्षता प्रख्यात साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता पं. लोचन प्रसाद पांडेय ने की थी। इसका परिसर पेड़-पौधों से घिरा हुआ है रंग -बिरंगे फूल पौधे इसकी शोभा बढ़ाते हैं। इसके तीन खंड है जिसमें शताधिक कमरे है और जहां मौखिक, प्रैक्टिकल के साथ प्रायः सभी विषयों की पढ़ाई होती हैं। पिछले पचास पचपन वर्षोँ में यहाँ लाखों इंजीनियर निकल चुके हैं, और देश के विभिन्न भागों में सेठ किरोड़ीमल का नाम राष्टव्यापी कर चुके हैं। इसी बिल्डिंग में एक आँडिटोरियम भी हैं, जिसमें शहर तथा दूसरे शहरों के कवि, लेखक एवं कलाकार शिरकत करते हैं।

              जनचेतना के अग्रदूत सेठ किरोड़ीमल ने सभी सुविधाओं से युक्त एक पुस्तकालय की भी स्थापना 1954-55 में की थी, इसका निर्माण नेत्र चिकित्सालय और बूजी -भवन (धर्मशाला)के बीच किया था। इस पुस्तकालय का परिवर्धन पालूराम धनानिया कामर्स काँलेज के प्राचार्य श्री नंदलाल शर्मा ने बड़ी निष्ठा से किया था, खेद है रख रखाव के अभाव में वह प्रायः सभी विषयों की पुस्तकों का विशाल ग्रंथालय भी दीमकों का आहार हो गया। धर्मशाला में ठहरने वाले यात्रियों के लिए ट्रस्ट की ओर से भोजन - पानी की व्यवस्था रहती थी, खेद है, इसका उपयोग व्यावसायिक परिसर के रूप में किया जा रहा है। सेठ जी व्दारा निर्मित काँलोनियों में वर्षों से काबिज में से कुछ लोग स्थाई रूप से कब्जा कर चुके हैं।

             आधुनिक रायगढ़ के इस महान शिल्पी का देह पतन 2 नवम्बर 1965 को हुआ था, पर यंश काया रुप से वे आज भी हमारे बीच जीवित है। ऐसे महान  धर्मवलम्बी  सेठ किरोड़ीमल का नाम समाज व्दारा क्या कभी भुलाया जा सकता है, रायगढ़ उनका सदैव ऋणी रहेगा।
                                    बसन्त राघव
              पंचवटी नगर, बोईरदादर, रायगढ़, छत्तीसगढ़

1 comment

s said...

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